नई पुस्तकें >> अभी सीख रहा हूँ अभी सीख रहा हूँसतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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सतीश शुक्ला 'रक़ीब' का दूसरा ग़ज़ल संग्रह
उर्दू ग़ज़लों के शैदाई और दिलदादा सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
'रक़ीब' के मजमुआ ए कलाम का मसौदा मेरे सामने मुताले की मेज़ पर है, धीरे-धीरे पढ़ रहा हूँ और उनके कलाम की शगुफ़्तगी का लुत्फ़ उठा रहा हूँ. यह हैरत का मक़ाम है कि हिंदी का स्कॉलर उर्दू में इतने अच्छे शे'र निकाल रहा है. इसे उर्दू ज़बान की दिलकशी का सबब कहूँ या उनका उर्दू ग़ज़लों से बेहद लगाव और ज़ौक़-ओ-शौक़.
हालांकि शुक्ला साहब से मेरी कभी रू-ब-रू मुलाक़ात नहीं हुई क्यों कि फ़ासले हामिल हैं लेकिन फ़ोन पर और ख़त-ओ-किताबत से अच्छी ख़ासी मुलाक़ात है. उनका कलाम उर्दू के मुख़्तलिफ़ रिसालों में पढ़ने को मिलता रहा है.
ग़ौर तलब है की एक हिंदी का तालिबे इल्म पहले उर्दू सीखे, उर्दू के रस्म-उल-ख़त की मश्क करे, उर्दू अलफ़ाज़ के मआनी समझे फिर उर्दू शायरों के कलाम उर्दू में पढ़े और हिंदी में लिखे. यह काम आसान नहीं है लेकिन शुक्ला साहब ने यह काम अपने ज़ौक़-ओ-शौक़ की बदौलत कर दिखाया है. मैं उनका कलाम शुरू से पढ़ रहा हूं. मैंने नोट किया है कि पहले के मुक़ाबले में उनके ज़बान-ओ-बयान में शगुफ़्तगी आ गई है. बहर और वज़्न भी कसौटी पर खरे उतरते हैं.मिसाल के तौर पर ये अश'आर मुलाहिज़ा हों...
रोएंगे तन्हाई में
क़ुर्बत में तो हँस लें हम
रंजो-ग़म दुनिया भर के
हँसते-हँसते सह लें हम
ख़बर सुनकर मिरे आने की सखियों से वो कहती है
ख़ुशी से दिल धड़कता है, मुहब्बत की क़सम कुछ कुछ
तेरा वजूद है मौसम बहार का जैसे
अदा में तेरी, तिरे बाँकपन की ख़ुशबू है
हैं आप मेरे हमसफ़र
मैं कितना ख़ुशनसीब हूँ
ये हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई
सामने बेनक़ाब है कोई
चाँद पर ऐसे छाये हैं बादल
रुख़ पे जैसे नक़ाब है कोई
दो घड़ी और ठहर, देख लूँ चेहरा तेरा
अक्स आँखों से मिरे दिल में उतर जाने दे
उर्दू-हिन्दी के इम्तिज़ाज के लिए एक शे'र मुलाहिज़ा हो -
गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिन्दी से
मिरे मिज़ाज में उस अंजुमन की ख़ुशबू है
क़ौमी यक-जहती के लिए उनका ये शे'र देखें -
इक अयोध्या के लिए क्यों हैं परेशां दोनों
मस्जिदें और भी हैं और शिवाले कितने
यतीमों और ग़रीबों के लिए 'रक़ीब' साहब का ये शे'र ग़ौरतलब है-
अता किया है जो रब ने तुझको, सँवार दे तू नसीब उनका
यतीम बच्चों की परवरिश में, तुझे यक़ीनन ख़ुशी मिलेगी
शुक्ला साहब ने अपना तख़ल्लुस न जाने किस मस्लहत से 'रक़ीब' रखा है। अपनी फ़ितरत से वो बहुत बहुत अच्छे हबीब हैं. जितना मैं अब तक उनको समझ पाया हूं, वो बहुत शरीफ़, मुख़्लिस इंसान हैं और बहुत दिल-आवेज़ शख़्सियत के मालिक हैं. क़ौमी यक-जहती के अलंबरदार हैं. समीम-ए-क़ल्ब से दुआ निकलती है. अल्लाह करे ज़ौक़-ए-सुख़न और ज़ियादा.
- बी. एस. जैन "जौहर"
मेरठ, उत्तर प्रदेश
मोबाइल- 09358400900
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